कुछ दिन पहले की बात है, हम तीन पत्रकार थे और एक कांग्रेसी नेता। चुनाव चर्चा होनी स्वाभाविक थी। सवाल उठा राजनीतिक जलसों में लोगों के कम आने का। नेतागण बोलने लगे, ‘क्या करें अब भारी संख्या में लोगों को सभाओं में लाना बहुत मुश्किल हो गया है। एक जमाना था, हम गांव में ट्रक लगा देते थे और लोग खुद ही आ जाते थ। ट्रक भर जाता था। अब ट्रक में तो आने के लिए कोई राजी ही नहीं, बस और दूसरी मोटर गाड़ी करनी पड़ती है। कम से कम 10 से 15 बार फोन करना पड़ता है। अपने आप तो सिर्फ वहीं आते हैं जिनको 2-4 बार थाने से बचाया होता है या व्यक्तिगत स्तर पर काम करवाए होते हैं। इसके साथ खाने-पीने का भी पूरा इंतजाम करना पड़ता है। कई बार तो नकदी भी देनी पड़ती है। ‘हमने कारण पूछा तो उसने ईमानदारी दिखाते हुए कहा, ‘क्यों आएं वह मुफ्त में ? हम उन्हें देते ही क्या हैं -सिर्फ वादे और दिखाते हंै सब्जबाग’ राजनीतिक नेताओं से उनका भरोसा उठता जा रहा है। वो सभी नेताओं को एक जैसे ही मानने लगे हैं। हां यह बात सच है कि लोग न तो राजनीति को छोड़ सकते हैं और न ही नेताओं को। जालंधर में कांग्रेस रैली की चर्चा होती रही। अब कुछ जगहों पर आडवाणी की यात्रा में उम्मीद से कम भीड़ जुटी। इसका एक कारण पार्टियों और नेताओं की नेगेटिव राजनीति की प्रथा भी है। सिर्फ विरोध के लिए विरोध। एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश। मुद्दों की जगह व्यक्तिगत आलोचना, कीचड़ उछालना. हिंसक बदलाखोरी की धमकियां। अभद्र और अश्लील शब्दों का प्रयोग। कुछ लोग तालियां भी बजाते हंै, मीडिया में सुर्खियां भी बनती हैं, लेकिन लोगों का बड़ा हिस्सा ऊब जाता है। प्रचार में केवल भौंडी-भाषा बोलने की जरूरत नेताओं को कब होती है ? जब अपने पास या विरोधी को चुप कराने के लिए मुद्दे नहीं होते। पंजाब में भी इन दिनों कुछ ऐसा ही हो रहा है। सियासी दुश्मन को अपने पंैतड़े से उखाडऩा होता है। एक-दूसरे को रजनीतिक मात देने के लिए, शब्द-जाल भी बिछाते हैं। उत्तेजनापूर्ण भाषा का उपयोग बार-बार करते हैं। यह भी राजनीतिक चालबाजी है। नतीजा, दूसरा पक्ष भी उसी शब्द-दंगल में उलझ जाता है। पिछले कुछ दिनों में पंजाब में भी ऐसा ही हुआ है। बादल साहिब की संयम की अपील अपनी जगह ठीक है पर सवाल है, -क्या सत्ता-पक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह के राजनीतिक ट्रैप में आ गया है ? अगर नहीं तो, विकास और सुधारों के अपने एजंडे को पीछे छोड़ अकाली नेता अमरिंदर सिंह की जवाबी बयानबाजी पर क्यों उतरे?
(कॉलम में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)
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तिरछी नज़र /बलजीत बल्ली /Tirchhi Nazar by B,
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