एक वक्त था, जब आया राम-गया राम की राजनीति के लिए हरियाणा बदनाम था। लेकिन जो पंजाब में पिछले दिनों में हुआ, उसे देखकर लगता है कि यहां के नेता भी दलबदल की राजनीति बेशर्मी के साथ करने लगे हैं। कुछ महीने पहले जो नेता शिअद छोड़कर मनप्रीत बादल के साथ गए थे, अब वे एक-एक कर वापस प्रकाश सिंह बादल की शरण में आ रहे हैं। चरणजीत बराड़, वरिंदर बजवा, मनजिंदर कंग जैसे नेताओं के लिए तब बादल सरकार और इसके नेता पंजाब विरोधी व भ्रष्ट नजर आ रहे थे। उन्हें लगता था कि ये नेता पंजाब को कर्ज के जाल में फंसाने वाले गुनाहगार हैं। इस सरकार के खिलाफ लोगों को जाग्रत करने के लिए वे सभी मनप्रीत बादल की ‘जागो पंजाब’ यात्रा में शामिल थे। उन सबके लिए अब बड़े बादल और छोटे बादल दूध के धुले हो गए हैं। जो आरोप इन्होंने पार्टी छोड़ते समय सत्ताधारी नेताओं पर लगाए थे, वही आरोप अब मनप्रीत पर लग रहे हैं। जब चरणजीत बराड़ और उनके परिवार के खिलाफ चावल मिल लगाने के मामले में पुलिस ने फॉड का केस दर्ज किया तो इन नेताओं का बयान था कि दोनों बादल बदला लेने के लिए ऐसा कर रहे हैं और अब बहुत ही नेक इंसान बन गए हैं। इसी तरह, दोनों बादलों के लिए कुछ समय पहले मनप्रीत का साथ दे रहा एक नेता मुजरिम था और आज वह अकाली दल का वफादार नजर आ रहा है। सरकार का दबाव तो था ही पर असल बात यह है कि मनप्रीत के साथिओं को लगने लगा है, उनके साथ चलकर वे सत्ता की सीढ़ी नहीं चढ़ पाएंगे। दिलचस्प बात यह है चुनाव से पहले पंजाब के नेता पूरी बेशर्मी के साथ लोगों को बेवकूफ बनाने का प्रयास कर रहे हैं। लोग भी तो उसी बेशर्मी के साथ तालियां बजा रहे हंै। इस पूरी कहानी के बाद चुनाव में लोगों का रुख क्या होगा, यह देखने वाली बात है। लगता है कि विधानसभा चुनाव के दौरान इस तरह की मौकापरस्ती प्रदेश की सियासत पर हावी रहेगी।
बादल पर मोहने की मेहर
पंजाब के कांग्रेसी, दिल्ली में परमजीत सरना और बादल विरोधी अकाली गुट इस बात से दुखी हैं कि चुनाव से कुछ महीने पहले ही एसजीपीसी कमेटी के चुनाव करके दिल्लीवालों ने बादल को फायदा क्यों पहुंचाया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ प्रकाश सिंह बादल के अच्छे सबंध तो हैं ही, लेकिन लगता है इस दरियादिली के पीछे कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी द्वारा अपनाई जा रही कूटनीति यही है कि पंजाब में मॉडरेट सिख विचारधारा और लीडरशिप को कमज़ोर न होने दिया जाए। लगता है सोनिया-मनमोहन जोड़ी इंदिरा गांधी के समय में हुईं गलतियों को दोहराना नहीं चाहती। जबसे सोनिया की अगुवाई में केंद्र में कांग्रेस विराजमान है, तब से यही नीति अपनाई गई है। इसकी मिसाल हरियाणा में एचएसजीपीसी कमेटी की इजाजत न देना भी है, जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने यह मुद्दा चुनावी घोषणापत्र में भी डाला था।
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TIRCHHI NAZAR BY BALJIT BALLI( DAINIK BHASKAR ,AUG.13,2011),
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