यह बात अक्टूबर 1993 की है . शाम का वक्त था .लाहौर में एक नामवर अदबी हस्ती की कोठी में हम तीन लोग खाने पीने का आनंद ले रहे थे . अदबी मेज़बान के इलावा तीसरा सज्जन भी एक लेखक था .व्हिस्की की बोतल वोह थी जो मैं इंडिया से लेकर गया था. पाकिस्तान में शराब के सेवन और सेल पर पाबन्दी थी .सिर्फ 5 तारा होटलों में विदेशी नागरिकों को शराब खरीदने की इज़ाज़त थी. इस के लिए भी एक परमिट लेना पड़ता था. मैं दो बोतल साथ ले गया था खुल्ही होई एक बोतल में से आधी से ज्यादा हमने पी ली थी . खाने का वक्त हुआ तो हमारे मेज़बान ने बची हुई बोतल उठाई और बोला कि इस को मैं अंदर रख लेता हूँ .कुछ मिनटों के बाद जब हम खाने के टेबल की और गये तो देखा कि सामने कमरे में व्ही बोतल हमारे मेज़बान की पत्नी के आगे पड़ी थी और वो पेग लगा रही थी .एक औरत का इस तरह शराब पीना मेरे लिए बहुत आशचर्य की बात थी .गेस्ट हाउस को जाते वक्त मैं उस तीसरे सज्जन से बात की तो उसने बताया की वहां के अमीर और बड़े घरों में ऐसा ही होता था . मेरा अदबी दोस्त एक जागीरदार परिवार से भी था और सिआस्त्दान भी . पहिली वार पाकिस्तान गया था. मैं अजीत अख़बार के लिए पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली के चुनाव कवर कर था. दो तीन दिन बाद पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की चुनाव रैली में पहुंचा तो एक और नज़ारा देखा कि बेनज़ीर भुट्टो एक बहुत बड़े आकार की पजेरो गाड़ी को खुद चला रही थी .यह वो चुनाव था जब बेनज़ीर दूसरी वार प्रधान मंत्री बनी थी .पाकिस्तान के मौजूदा प्रधान मंत्री युसफ राजा गिलानी उस वक्त नेशनल असेम्बली के स्पीकर चुने गये थे .सिर्फ बेनज़ीर ही नहीं उन दिनों लाहौर और इस्लामाबाद में बहुत सी औरतों को लग्जरी मोटर गाड़ियाँ चलाते देख कर बहुत हैरानी हुई थी .इतना ही नहीं वहां कुछ महिला पत्तरकारों को शरेआम सिगरट के कश लगाते देख कर मन में कई सवाल उठे थे कि एक तरफ पर्दे में रहीने के फुरमान और समाज में नारी का बेहद्द शोषण और दूसरी तरफ मर्दों जैसी खुल्ही छूट . इस के बाद जब तीन वार पाकिस्तान जाने का मौका मिला तो नतीजा यह निकला कि पाकिस्तान के जागीरदार ,अमीर और नीचे से लेकर उप्पर तक किसी न किसी रूप में सत्ता पे काबज़ घरानों की औरतों को ही ऐसी आज़ादी रही है . एक बहुत दिस्ल्चास्प किस्सा है .जब अटल बिहारी वाजपाई बस लेके लाहौर गए थे तो उनके साथ चंडीगढ़ से गया एक बजुर्ग पत्तरकार रात के खाने की दावत मौके पाकिस्तान की एलीट और राजनितिक घरानों की औरतों के खुल्हेपण को देखके दांग रह गया था .इस बारे उसने अपनी आखों से देखे कितने ही दिलचस्प किस्से यहाँ पत्तरकारों और अफसरों को मसाले लगा कर सुनाये थे .
पाकिस्तान कि राजनीती में बेनज़ीर समेत जितनी औरतें आगे आई उनकी परिवारक पृष्ठभूमि ऐसे साधन -सम्पन्न घरानों की ही रही है जो जागीरदार होते होए भी पच्छिमी रंग में रंगे हुए थे .भारत के दौरे पर आई पाकिस्तान की खूबसूरत और युवा विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार भी ऐसे ही पोलटिकल एलीट घराने से है. पाकिस्तान नेशनल असेम्बली की महिला स्पीकर डॉ फहिमीदा मिर्ज़ा भी ऐसे ही राजनितिक परिवार से है.पाकिस्तान नेशनल असेम्बली में 60 सीटें महिलाओं के लिए रिज़र्व हैं लेकिन कुछ जनरल निर्वाचन क्षेत्रों से भी चुनी गई है जिससे नेशनल असेम्बली में महिलाओं का हिस्सा 22 % हो गया है लेकिन साधारण औरत की दशा अभी भी दयनीय है . अभी तक तो- हदूद ओर्डिनांस - जैसे महिला विरोधी काले कानून भी मौजूद है जो बलात्कार का शिकार औरत को भी इंसाफ का हक्क नहीं देता . अभी भी आसमा जहाँगीर जैसी मानव अधिकार एक्टिविस्टों को औरतों के मूल हक्कों के लिए भी लम्बी जदोजहिद करनी पड रही है.
शिरोमणि कमेटी चुनाव - अकालीओं के लिए दो-धारी तलवार
शिरोमणी गुरद्वारा परबंधक कमेटी के जनरल हाउस के लिए सितम्बर में हो रहे आम चुनाव अकाली दल और दोनों बादलों के लिए दो-धारी तलवार की तरह हैं .विधान सभा चुनाव से सिर्फ 5 महीने पहिले यह चुनाव होने का अकाली -बी जे पी सरकार को फायदा भी है और नुकसान भी .सबसे अहिम पक्ष यह है की 1979 के आम चुनाव के बाद यह पहिले एस जी पी सी चुनाव हैं जब अकाली दल बादल प्रान्त की सत्ता में है.इस से पहिले 1996 तथा 2004 दोनों वार हुए चुनावों के समें पंजाब में कांग्रेस की हकूमतें थी. 2004 में तो अमरिंदर सरकार के समय अकालीओं को काफी मुश्कल का सामना करना पड़ा था . सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह के दखल से हालात बिगड़ने से बचे थे. सरकार में होते हुए अकाली दल को चुनाव लड़ना आसान है .सत् में होने का दूसरा लाभ अपने तरफ की सिख वोट बनाने में भी अकालीओं को ही रहा . अकाली दल के मुकाबले चुनाव लड़ने वाली पार्टियाँ या अकाली गुट बहुत छोटे हैं.वो सारे इकठे भी हो जाएँ तो भी उनको बहुमत मिलना आसान नही. अगर बड़े फर्क से अकाली दल चुनाव जीत जाता है तो इसका सीधा लाभ विधान सभा चुनाव में हो सकता है . अगर 2004 के चुनाव से अकाली दल को कम सीटें मिली तो इसका राजनितिक नुकसान भी होगा . पंजाब में यह पहिली वार है की चुनाव के 6 महीने पहिले पर्देश का राजनितिक एजंडा तह करने की पहिल विरोध पक्ष के पास न हो के सत् पक्ष के हाथ में हो. अकाली - बी जे पी गठबंधन इस वक्त पूरे चुनाव मोड़ में हैं और सिआसी पहिल्क्दमी इस के पास है . सत्ता पक्ष को एक नुकसान यह भी है की सरकार की और से जिस तरह विकास तथा गवर्नंस सुधारों के एजंडे को राजनितिक हमले और चुनाव मुद्दे के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है , जैसे लगातार लोक -लुभाऊ फैसले किये जा रहे थे और ग्रांट्स बांटी जा रही थी इस कारन सत्तापक्ष राजनितिक तौर पे अकर्मक और हावी था . ये सारा सिलसिला एक वार ठप्प हो जायेगा . चुनाव कोड भी लगेगा और धार्मिक तथा सिख राजनीती के मुद्दे आगे आ जायेंगे . पंथक एजंडा हावी होने से पूरा राजनितिक डिस्कोर्स ही बदल जाएगा . जब अक्टूबर में सी चुनाव का कोड खत्म होगा तब असेम्बली चुनाव के लिए कोड लगने का वक्त आ जायेगा ,इस लिए ग्रांट्स, भरतीं तथा वोट बैंक के हिसाब से लोगो को सहुलतें देना मुश्कल होगा .लेकिन अकाली दल को एस जी पी सी के चुनाव के जरिए अपनी पार्टी को लामबंद भी करन का मौका भी मिल जायेगा जो कि विधान सभा चुनाव की तयारी के लिए इक रेहेर्सल भी साबत हो सकती है . कांग्रेस पार्टी में भी दो तरह के विचार हैं. कुछ का मानना है एस जी पी सी चुनाव परक्रिया शुरू होने से सरकार के सारे काम रुक जाएँगे जिसका राजनितिक लाभ कांग्रेस को होगा . दूसरा विचार व्ही है की इस चुनाव में अकालीओं की हुई जीत से उनको असेम्बली चुनाव के लिए नैतिक होंसला मिलेगा .इस विचार के धारनी कांग्रेसी तथा बादल विरोधी अकाली गुट एस जी पी सी चुनाव रुकवाने की कोशिश में भी हैं .
पंजाब के नये जिले -अग्गा दौड़ पिच्छा चौड़ ?
शाहिरी वोट बैंक को खींचने कि राजनितिक मजबूरी के कारन पंजाब कि अकाली- बी जे पी सरकार ने दो नए जिले फाज्लिका और पठानकोट तो बना दिए और वहां के लिए पोस्टें भी मंज़ूर करदीं लेकिन अफसर कहाँ से आएंगे. इस वक्त जो 20 जिले हैं उनमें से कई जिले अफसरों को तरस रहें हैं .पंजाब का पिछड़ा माने जाना वाला मानसा जिला इस की एक अच्शी खासी मिसाल है. जिला पर्शाशन में सिर्फ रविंदर सिंह डेपुटी कमिशनर ही हैं और वो भी पी सी एस . उनके नीचे लगभग सभी अहिम पोस्टें खाली हैं. जिला ट्रांसपोर्ट अफसर , जिला समाज भलाई अफसर ,ऐ डी सी जनरल मनसा ,जिला शिकायत निवारण अफसर ,ऐ सी (जी ) मानसा, एस डी एम सरदूलगढ़ ,एस डी एम बुढलाडा , दो अधीक्षक तथा नायब -तहसीलदार बरेटा की पोस्टें खली पड़ी हैं .लोग और निचले अधिकारी तथा कर्मचारी भी परेशान हैं . आप अंदाज़ा लगाओ जिस ने मानसा में गाड़ी का ल्संस और रजिस्टर करनी हो तो उसका क्या हल होगा . मानसा के लिए एक एस डी एम लगाने के अभी हुकम हुए हैं लेकिन अभी उसने हजारी नहीं दी. और मानसा जिला बठिंडा लोक सभा हलके में पड़ता है जहाँ से हरसिमरत कौर बादल एम पी हैं . लोगों की नए जिले बनाने की मांग सही भी हो लेकिन नए जिलों में अफसर और स्टाफ देना तो सरकार की जिम्मेवारी है. इस फैसले पर "अग्गा दौड़ पिच्छा चौड़" वाली पंजाबी की कहावत खूब फब्ती है .
मनप्रीत बादल की ईमानदारी की परख
चुनाव लोक सभा का हो या फिर विधान सभा का , पंजाब की सभी पार्टिओं के नेता चुनाव से पहिले विदेश दौरों पे जाते हैं . कुछ नेताओं को छोड़ कर सभी का निशाना वहां से माया इकठी करना होता है.दिलचस्प बात यह है की वहां से मिला पैसा आम तौर पर हवाला के ज़रिए ही भारत में आता है .यहाँ से नेताओं का पैसा बहार जाता भी है. कई कांग्रेसी और अकाली नेता इस वर्ष में विदेश में चक्कर लगा चुके है और कुछ इन दिनों भी जा रहें है. पीपल्स पार्टी के प्रधान मनप्रीत सिंह बादल पहिली वार अलग पार्टी के नेता के तौर पर कनाडा और अम्रीका के दौरे पर गए हैं . उनके स्वागत की तयारी भी बहुत जगा खूब हो रही थी और काफी धन व्भी एन आर आईस ने मनप्रीत को देने के लिए इकठा किया है .अब सवाल यह है क्या वह यह पैसा लेते हैं या नहीं ? अगर लेते हैं तो इस धन को वो कैसे इधर लायेंगे ? उसका हिसाब जनता को देंगे या नहीं ? इस से मनप्रीत बादल की ईमानदारी की भी परख होगी .
सम्पादकीय सलाहकार
पी टी सी न्यूज़
चंडीगढ़-
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तिरछी नज़र/बलजीत बल्ली/ Baljit Balli / Dai,
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