पिछले तीन वर्षों में मैंने तीन बार अकाली राजनीती के पितामा परकाश सिंह बादल की इंटरविऊ की .दो बार टी वी चैनल के लिए और एक बार अख़बार के लिए .तीनो बार यह प्रशन पूछा गया-आप की सबसे बड़ी प्राप्ति कौन सी है .उम्मीद हर बार यही होती थी कि बादल सडकों ,पुलों ,बिजली प्लांटों और गावं -शहिरों के विकास की बात करेंगे ,दलित-भलाई स्कीमों की बात करेंगे .ऐसा नहीं हुआ .तीनों बार उनका जवाब एक जैसा ही था.बादल बोलते थे -हमारी सभ से बड़ी सफलता है -पंजाब में अमन-शांति , फिरकू एकता और सद-भावना का वातावरण .इस का खुलासा वो ऐसे करते थे-हमारे पडोस में पाकिस्तान है , वहां आग लगी हुई है.उधर हमारे पड़ोस में जम्मू-कश्मीर में भी आग लगी हुई है, पर हमने पंजाब में इस का सेक नहीं लगने दिया .वो अपनी 1997 तथा 2007 में चली दोनों सरकारों का हवाला देते थे . बादल का इशारा पंजाब को आतंकवादी हिंसा से बचाए रखने कि ओर होता था . उनका कहना होता था कि अमन के बिना विकास का भी महत्व नहीं है.देखा जाये तो प्रकाश सिंह बादल के इस दावे में दम है.आम तौर पर आतंकी हिंसा से पंजाब बचा रहा है.भारत सरकार का राजनितिक तथा अफसरी नेतर्त्व भी बादल और माडरेट अकाली लीडरशिप की इस भूमिका का कद्रदान है कि उन्हों ने प्रान्त में खालिस्तानी, उग्र तथा अलग्गाव्वादी गुटों को ताकत से भी दबा के रखा और राजनितिक क्षेत्र में भी अप्रसांगिक बना दिया .लेकिन इस का यह अर्थ यह नहीं कि वो विचारधारा समाप्त हो गई या फिर खालिस्तान-पक्षी लहर को पुनर-सुरजीत करने की कोशिश नहीं हुई .वो तो अंदर से, बाहर से और आस-पडोस से लगातार चलती रही .प्रकाश सिंह बादल और उनकी पार्टी का चरित्र माडरेट है, लगभग सभी मानते है.सिखों के एक हिस्से के लिए नफरत का पात्र बने आल्हा पुलिस अफसर को डी जी पी लगाना पर बलवंत सिंह राजोआना मामले में और हरिमंदिर साहिब में बलिऊ स्टार की यादगार कायम करने के मुदों पर दोनों बादलों , अकाली लीडरशिप और अकाली-बे जे पी सरकार के सेकुलर करैक्टर पर गम्भीर प्रश्न उठे थे.यहाँ सवाल कांग्रसी नेताओं के दोषों का नहीं बल्कि लोगों के एक बड़ा हिस्सा भी इन मुद्दों पे अकाली लीडरशिप की आलोचना करता रहा .
ऑपरेशन बलिऊ स्टार में फ़ौज की इन्फंट्री डिवीजन के कमांडर जनरल के एस बराड़ पे 30 सितम्बर को लंदन में हुए हमले के बाद ऐसे ही प्रशन फिर उठने लगे हैं. दोनों बादलों और उनकी पार्टी और सरकार कि ओर से इस हमले कि निंदा ना करना चर्चा में है.जनरल बराड़ में भी बादल सरकार को कटघरे में खड़ा किया और कांग्रेस ने तो राजनितिक रोटीआं सेकने का अच्छा मौका समझा .आतंकवाद के लिए कांग्रेस को मुजरिम करार देने वाले बादल और अकाली दल को खुद बचाव के दवन पर आना पड़ा है.कारन सिख भावनाओं के ख्याल का हो या कोई और, मुझे लगता है बादल साहिब, उनकी सरकार और इसमें शामिल दोनों दल जनरल बराड़ पे हमले की निंदा ना करने की बड़ी राजनितिक भूल की है जिसने पहिले ही पैदा हुए सवालों को ताज़ा कर दिया है.राजोआना और बलिऊ स्टार यादगार के मुद्दों पर बादल और अकाली लीडरशिप की भूमिका पर इसी कालम में मैंने टिप्पणी की थी ,\"जब आग और काँटों से खेलोगे तो तपश भी झेलनी पड़ेगी और चुभन भी. \" यही सच साबत हो रहा है .कुलीश्न सरकार में शामल बी जे पी की हालत- सांप के मुहं में कोहड किरली - जैसी हो रही है .उनके हिन्दू वोट बैंक को खोरा भी लग रहा है लेकिन सरकार में गठजोड़ हिस्सेदार रहिने के लिए खुल्ह के नहीं बोल सकते .
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by Baljit Balli, Mob : 9915177722 e-mail:info@babushahi.com,
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