बचपन में जब गाँव में दो युवाओं का झगड़ा हो जाता था , किसी बात पे जोर आज़माई हो जाती थी,एक दुसरे को चुनौती देनी होती थी तो कहा जाता था, \" तूं कौनसा दारा भलवान हैं \".दारा सिंह रुस्तमे हिंद तो कुश्ती के थे लेकिन उनकी तुलना सब से ताकतवर शक्तिमान के तौर पे की जाती थी .यह 40-45 वर्ष पहले की बात है .आज तक भी ऐसा रुतबा किसी और पहिलवान को आज तक भी नहीं मिला. छठे और सातवें दशक में दारा सिंह को और उनकी फ़िल्में देखने का क्रेज़ इतना था कि हम स्कूल से भाग कर घरवालों से चोरी दारा सिंह के फ़िल्में देखते थे .मिल्खा सिंह की तरह उसके बाद आज तक भी दूसरा दारा सिंह कोई नहीं पैदा हुआ .दारा सिंह की जगह कोई ही-मैन भी नहीं ले सका .महाभारत और रामायण ने दारा सिंह की उसी छवि को और बढाया .
पंजाबी सिनेमे का नया दौर है जट्ट एंड जुलिअट
दारा सिंह की बात चलेगी तो पंजाबी सिनेमे की भी चर्चा होगी . हिंदी सिनेमे के साथ पंजाबी सिनेमे के पूरे एक दौर के प्रतिनिध थे दारा सिंह .यह मौका-मेल ही है कि दारा सिंह से के साथ ही पंजाबी सिनेमे का वो पुराना दौर समाप्त हो गया लेकिन इन दिनों में ही पंजाबी सिनेमे का एक नया दौर शुरू हुआ है फिल्म जट्ट और जुलिअट के साथ .पंजाब और बाकी दुनिया भर के मल्टी प्लेक्सों में दर्शकों को खीँच रही इस फिल्म ने पंजाबी फिल्मों के पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं .२९ जून को रिलीज़ हुई जट्ट एंड जुलिअट अब तक 10 करोड़ रुपये से भी ज़यादा कमाई केवल पंजाब और चंडीगढ़ में कर चुकी है.फिल्म जगत से लम्बे समय से जुड़े मैनेजर -कलाकार दर्शन औलख का कहना है कि पंजाब में जट्ट और जुलिअट बड़ी कमाई के हिसाब से हिंदी फ़िल्में 3 एडियीयेट , दबंग और बॉडी गार्ड जैसी फिल्मों को मात दे गई है.डेढ़ हफ्ता बीत जाने के बाद भी चंडीगढ़ के सिनेमों में देर रात के शो की टिकटें भी आसानी से नहीं मिलती .अम्रीका ,कनाडा और युर्पी मुल्कों में भी यह खूब चली है .यह सफलता केवल फिल्म के निर्माता,निर्देशक या दिलजीत और नीरू बाजवा के लिए ही ख़ुशी का मुकाम नहीं बल्कि पूरे पंजाबी सिनेमा जगत के लिए एक नई उम्मीद की किरण है.लेकिन पंजाबी सिनेमा जगत के लोगों के लिए जट्ट और जुलिअट एक सीख भी है - फिल्मे बुनिआदी तौर पर एक मनोरंजन है .अगर लोगों को इसके रूप में टिकेट की कीमत वसूल होगी तो वो खुद ही खींचे चले आएंगे .खैर, लम्बे समय से सथापती के लिए जूझ रहे पंजाबी सिनेमा जगत को मुबारक .
पटियाला भूमी स्कैम में केवल अफसर ही या राजनेता भी ?
चर्चित हुए पटियाला के सरकारी भूमी स्कैम में आल्हा अफसरों से लेकर माल विभाग के निचले अधिकारिओं पर गाज गिरी. आई ए एस और पूर्व डी सी विकास गर्ग को चार्जशीट भी किया गया है. विजिलेंस जाँच भी शुरू हुई लेकिन सवाल यह है कि इस स्कैम में केवल अफसर ही शामल थे ? क्या इस के पीछे कुछ ताकतवर राजनितिक लोग भे थे ? इस भूमी को खरीदने वाले क्या असली खरीददार थे या उनके पीछे कोई और नेता थे ? क्या विजिलेंस जाँच के घेरे में वो भी आएंगे ? क्या यह तथ्य भी समने आएंगे कि उस ज़मीन को निजी हाथों में सोंपने के लिए कौन- कौन से नेता विकास गर्ग से पहले भी आल्हा अफसरों पर दबाव डालते रहे थे ? सवाल तो यह भी है पहिले सरकार ने इस मामले में बहुत तेज़ी से करवाई की पर बाद में रफ्तार धीमी क्यों हुई ? यह भी बताना ज़रूरी है विजिलेंस ने इस मामले में अभी तक केस दर्ज क्यों नहीं किया.
कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी-अकाली दल की भी मुश्किल
पंजाब कांग्रेस के नेताओं और वर्करों की अकाली दल की ओर तेज़ी से हो रही दल बदली कांग्रेस पार्टी और इस के नेताओं के लिए खतरे की घंटी है .लगातार हो रही हारों से कांग्रसी नेताओं और वर्करों का मनोबल काफी गिर गया है .पंजाब कांग्रेस की लीडरशिप उनकों यह भरोसा दिलाने में असफल रही है कि आने वाले लोक सभा चुनाव में या पंजाब कि राजनीती में कांग्रस पार्टी एक ताकतवर विपक्ष की भूमिका निभा सकेगी और उन सभी को इकठा रख सकेगी.नतीजा यह है दीपिंदर ढिल्लों जैसे पुराने कांग्रेसी भी कांग्रेस में आगे सिआसी अँधेरा देख अकाली दल की ओर रुख कर रहें हैं .लगता है एक तरफ पार्टी नेतर्तव में तबदीली की मांग एक वार फिर उठेगी और दूरी तरफ हर स्तर के नेता और वर्करों का एक हिस्सा अकाली दल में जाने की कोशिश में होगा.सत्ता के नज़दीक आने और इसमें हिस्सेदार होने के लिए अकाली दल की तरफ खींचे जा कांग्रेसी ,अकाली दल के लिए भी राजनितिक मुश्कलें बनेंगे .सथानीय और ऊपरी स्तर पर उनको राजनितिक और सरकारी सत्ता में जगा तो अकाली नेताओं -वर्करों की कीमत पर ही मिलेगी. नतीजा पुराने और नए अकालिओं की खींचतान में निक्लेगा.एक सीनिअर अकाली का कहना है कि बहुत सोच समझ कर और चुने हुए कान्ग्रेसिओं को ही अकाली दल में शामल करना चाहिए नहीं तो बहुत मुश्कलें पैदा होंगी.
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By Baljit Balli published in Dainik Bhaskar, Chandigarh on July 13, 2012.,
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