लगभग 27 वर्ष पाहिले राजीव-लोंगोवाल अकार्ड हुआ था .इस की आखरी और 11 नम्बर क्लाज़ में लिखा था -भारत सरकार पंजाबी भाषा की परमोशन के लिए कदम उठाएगी . इस के कुछ देर बाद ही नवम्बर 1985 में उस वक्त के प्रधान मंत्री और उस अकोर्ड पे दस्तखत करने वाले राजीव गाँधी ने नार्थ ज़ोन कल्चरल सेंटर का उद्घाटन किया था .वो दौर आतंकवाद का था.अलगावाद की भावनाए प्रबल थी .राजीव के थिंक टैंक में शामल चिंतकों ने आईडिया फ्लोट किया था .सिखों तथा देश के और भागों में बढ़ रही अलगाववाद तथा अलेह्दगी की भावना को रोकने का रास्ता केवल बल प्रयोग नहीं .उनमे राष्ट्रीय एकता और अखंडता की भावना पैदा करना लाज़मी है .इस के लिए भाषा और परम्परागत सांस्कृति को ज़रिया बनाना चाहिए .उदेश्य था .मुल्क के सभी प्रदेशों के लोगों की भाषा और सांस्कृति का अदान-प्रदान हो .एक -दूसरे को मिलेंगे ,समझेंगे तो राष्ट्रिय भावना बढ़ेगी .खजाने के दुआर भी खोल्हे गए .एन जेड सी के बाद 6 और ऐसे केंद्र कायम किये गए .सांस्कृतिक गतिविधियाँ तो बेशुमार हुई इन केन्द्रों के जरिये. .इन सांस्कृतिक केन्द्रों की सिल्वर जुबली के जश्न पंचकुला हो रहें है .अच्छी बात है .भारतवर्ष की \'\'माटी के सभी रंग \'\' देखने को मिलेंगे .शुरुआत पंजाब से हुई थी. सिल्वर जुबली जशनों की बड़ी जिम्मेवारी पंजाब के अधिकारी और एन जेड सी के डारेक्टर दविंद्र सिंह सरोया को मिली है . राजीव गाँधी तो नहीं रहे .पर कुछ प्रश्न ज़रूर हैं. क्या इन केन्द्रों की कारगुजारी का मुलांकन भी किया गया है ? क्या राजीव गाँधी का पूरे देश के के लोगों को एक राष्ट्रीय लडी में प्रोने का सुपना पूरा हुआ या नहीं ? क्या भारत के सभी हिस्सों में से अलगाववादी रूचि और लहिरे खत्म करने के लिए इन की कोई भूमिका है ? यह एक बहस का मुद्दा भी है और जवाबदेही का भी .
राज बब्बर : कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
राज बब्बर हरयाणा के इतने चक्कर क्यों लगा रहें हैं ? मुख्य मंत्री भूपिंदर सिंह हूडा के साथ वो बार-बार क्यों दिखाई देने लगे हैं ? राजनितिक चर्चा का विषय बन गया है यह .राज बब्बर ने हरयाणा चुनाव में कांग्रेस और हूडा के हक्क में प्रचार किया .ठीक है .फिरोजाबाद से 2009 में राज बब्बर ने लोक सभा चुनाव लड़ा.हूडा ने उनकी हर तरह मदद की ,यह भी सत्य है .लेकिन बब्बर की हरयाणा में बढती रूचि से प्रश्न उठ रहें है .कहीं यू पी के बदले हालात को देखते हुए 2014 के लोक सभा चुनाव के लिए बब्बर की नज़र हरयाने पर तो नहीं ?जवाब अभी नहीं पर राजनीती में कुछ भी संभव है .
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