पिछले हफ्ते इसी कालम में हमने लिखा था -बादल ऐसे नेता हैं जो हर चुनौती के बाद और बड़े और ताकतवर होक र निकलते हैं .इस वार भी व्ही हुआ .राजोआना की डैथ वारंट रुकवाना ,चुनौती बड़ी भी थी और उलझी भी हुई थी .मामला बहुत संवेदनशील था. ज़रा सी चूक के नतीजे भयानक हो सकते थे. मुख्य मंत्री और सुखबीर बादल ने विवेक और अक्लमंदी से इस मामले से निपटा .प्रकाश सिंह का राजनितिक रुतबा और बड़ा हो गया है . वोह सिख जगत के निर्विरोध और अविवादित नेता हैं ,एक बार फिर साबत कर दिया उन्होंने .और बात करें सुखबीर की .रणनीति और कूटनीति के सहारे प्रतिकूल स्थिति को अनुकूल बनाने की मुहारत फिट दिखाई है सुखबीर बादल ने . राष्टरपति और भारत सरकार के फैसले से राहत तो सभी को है .श्री अकाल तख़्त की ऑथोरिटी भी बहाल हुई है . सबक भी बहुत है और सिख समुदाय की मनोदशा के संकेत भी .विचार का मुद्दा है -बहुत लोग बेअंत सिंह को पंजाब में आतंकवाद के खिलाफ एक नायक मानते हैं.राजोआना उसके कत्ल का मुजरिम है.वो खुद मानता है.आम सिख तो ना हिंसा के हामी हैं न राजोआना की विचारधारा से.उसको बचाना एक जन-आन्दोलन क्यों और कैसे बना ? धार्मिक रंगत में रंगे किसी राजनितिक मुद्दे पर पंजाब में आम सिआसी सहिमती बनी हो ,ऐसा पहिली बार हुआ . यह अधियन और खोज का विषय है.बेशक मीडिया की भूमिका भी अहिम रही. राजनीती भी बहुत हुई . लगता है .पंजाब के लोगों विशेषकर सिख जन-मानस में एक धारणा बहुत प्रबल है-सिखों के साथ पक्षपात होता रहा है और हो रहा है .जिम्मेवार केवल केंद्र सरकार हो, देश का राज्प्र्बंध हो या फिर न्याएपालिका.हम सहमत न भी हों लेकिन उनके मन में एक प्रभाव बना है .सभी के लिए कानून का वयवहार भी एक जैसा नहीं. उनके मन में मौजूद रोष को व्यक्त करने के लिए राजोआना तो एक कैटालिस्ट ही बना है .यह स्थिति चेतावनी भी है ,चिंता का विषय भी है और मंथन का भी. एक पक्ष और भी है. लोगों से अलग-थलग हो चुके, उग्रवादी विचारधारा से जुड़े देश विदेश के सिख गुटों को अच्छा मुद्दा और मंच मिला.उन्हों ने इस मौके का उपयोग भी खूब किया .केसरी रंग से आकर्षत युवा पीढ़ी को लुभाने की कोशिश भी होगी इन गुटों की .
फांसी की सज़ा खत्म का प्रस्ताव
एक वर्ष पहिले की बात है .डॉक्टर प्रोमोद कुमार ने सुखबीर बादल को मशवरा दिया था .विधान सभा में प्रस्ताव लाओ -मौत की सज़ा खत्म करने का .शायद वो वक्त सही नहीं समझा गया .लेकिन अब वक्त की आवाज़ है यह .फांसी पर बहस भी खूब चली है . श्री अकाल तख़्त का हुक्म नामा भी है- फांसी को बंद कराने के लिए सिख आगे आयें . अगर चाहें ,बादल साहिब मुल्क में लीड़ ले सकते हैं .विधान सभा में मौत की सज़ा खत्म करने का प्रस्ताव ला सकते है.अमरिंदर इस मांग समर्थन कर चुके हैं . बी जे पी .न भी माने तो वो गैर-हाज़र हो सकती है उस दिन .प्रस्ताव आसानी से पारित हो जायेगा .एक पंथ दो काज वाला कार्य हो सकता है यह.पंजाब में किसी को फांसी भी नहीं देनी पड़ेगी .मुल्क में एक और नया इतिहास भी रचेंगे परकाश सिंह बादल .
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BY BALJIT BALLI , Published in Chandigarh Bhaskar Dated : March 30, 2012, Editor : www.babushahi.com , Tirchhi Nazar Media, Contact : 9915177722,
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