\" मैं बहुत सोचसमझ कर अकाली दल में शामल हुआ हूँ .मैं तो कोई भी काम ऐसा नहीं करता जिसमें मुझे फ़ायदा न हो.मैं तो एक एक पांव उठाने के बाद दूसरा पांव भी उतनी देर आगे नहीं करता जब तक कोई लाभा न दिखाई पड़े.यही सच है की अकाली वापस सत्ता में आ रहें हैं.मैं तो इसी लिए अकाली दल में वापस आया हूँ \",यह कथन बलवंत सिंह रामूवालिया का है .वे कुछ दिन पहिले अकाली विधायक विरसा सिंह वल्टोहा के हल्के में अकाली रैली में बोल रहे थे.राजनीती में ईमानदारी हो तो ऐसी हो .द्लबद्ली क्यों की ,बिलकुल नहीं छुपा रहे.न कोई सिधांत, न विचारधारा ,ना जन सेवा .उदेश केवल एक है. राज सत्ता में हिस्सेदारी .लाल बत्ती ,झंडी वाली कार ,हूटर और सुरक्षा कर्मिओं का तम झाम .लेकिन सभी नेता ऐसे नहीं होते.पार्टी या गुट बदल्तें हैं. दिखावे के लिए बहाने बहुत होते हैं.निशाना सिर्फ एक ही होता है. सिर्फ कुर्सी और माया.चुनाव के वक्त बढती द्लबद्ली इसी लिए है.कुछ हफ्ते पहिले इसी कालम में लिखा था .राजनीती एक बिज़नस बन रही है. बिज़नस कल्चर हावी हो रहा है.बिज़नस में तो मुनाफा ही प्रधान होता है. राज सेवा नहीं ,परिवार सेवा या कारोबार सेवा में लगे है ज़यादा नेतागण .जो परम्परागत नेता और वर्कर इस कल्चर में फिट नहीं होते ,वह भी इधर उधर भटकते हैं.अकाली दल के चिरंजी लाल गर्ग हो , मनप्रीत बादल की पीपल्ज़ पार्टी के नेता जगबीर हो या कुशलदीप .अकाली दल के अजित सिंह चंदू आराइयाँ हो या सर्चांद सिंह ,द्लब्द्ली का मूल मकसद तो सत्ता में शरीक होना है . अभी तो आगाज़ ही हुआ है .आने वाले दिनों में यह सिलसिला तेज़ होगा .टिकटों की बाँट होगी.और भी बहुत नेता एक से दूसरी पार्टी में छलांग लगायेंगे .मुख्य कारन दो ही रहेंगे -सत्ता और धन की लालसा . लगता है \"आया राम गया राम \" का गुर्ज अब सिर्फ हरियाने की सम्पति नहीं रही. चलो किसी क्षेत्र में ही सही पंजाब आगे तो निकला है हरियाने से. रही बात लोगों की ,अगर वह राजनीतिज्ञों को ऐसे ही स्वीकार करते हैं ,तो फिर मीयां-बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी .वोटर भी उपभोगता जैसा वयवहार करने लगे है.चुनाव के वक्त सोचते हैं.पांच वर्ष ,इन्हों ने हमें चूंडा है अब हमारी बारी है.
सहिज्धारी मामला- दो धारी तलवार
सहिज्धारी सिखों के मामले में हाई कोर्ट का निर्णय अकाली दल धार्मिक -राजनितिक झटका है . अमरिंदर सिंह तो जश्न के मूड में हैं .उनको लगता है विधान सभा चुनाव में सहिज्धारी कांग्रेस का वोते बैंक बनेगें .वो सही भी हैं . पर यह सिअसी हथियार दो धारी तलवार जैसा है.दूसरी तरफ अकाली दल इसी मुद्दे को अपने पक्ष में उपयोग करेगा . केशधारी तथा धार्मिक तौर पर कट्टर सिख दल के साथ लामबंद हो सकते हैं.नतीजा जो भी हो,यह पंथक एजंडा भी एक चुनावी मुद्दा रहेगा.
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तिरछी नज़र / Tirchhi Nazar by Baljit Balli .23-12-11,
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