\"वो रोज दो किलो मच्छी खाते है। 6 तीतर भी खा जाते है। मुक्तसर के सारे तीतर खत्म कर दिए हैं उन्होंने,\" यह कहना था कैप्टेन अमरिंदर सिंह का। निशाना थे प्रकाश सिंह बादल। फाज्लिका रैली में भाषण दे रहे थे वो। बादल की उम्र, पढ़ाई और कार्यशैली पर इसी लहजे में तीखे प्रहार। कांग्रेस की हर रैली में अब हमला बादल की छवि पर है। कुछ दिन पहले प्रमुख निशाना सुखबीर बादल थे। कारण ? कुछ दिनों का घटनाक्रम ही ऐसा है।
पंजाब की राजनीतिक एवं सामाजिक फिजा में ही अगर बादल छा जाएं तो अमरिंदर क्या करें। अकाली राजनीति का केंद्रबिंदु सुखबीर की जगह बादल बन जाएं, चुनावी रणनीति का एजेंडा पंथक हो जाए तो विपक्ष क्या करेगा। बादल पर ही आक्रमण करना उसकी मजबूरी होगी। सिख इतिहास और शहीदों की कुर्बानी की यादगारों के उद्घाटन समारोह थे तो धार्मिक, इनका इम्पैक्ट राजनीतिक है। केवल 5 दिन और 4 उद्घाटन। नतीजा-सिख गौरव और विरासत की संभाल का मुद्दा , देश-प्रदेश की चर्चा में है। प्रशंसक सिख ही नहीं गैरसिख भी बहुत हैं। प्रकाश सिंह बादल फिर सेंटर स्टेज पर हैं। पंथ रतन और फख्र-ए-खालसा खिताब पर तो मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इन यादगारों के साथ बादल का नाम भी इतिहास बनेगा। लिखा जाएगा, एक ऐसे मुख्य मंत्री और सिख नेता थे जिन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के बाद सिखों की शहादत को इमारती रूप में संभाला। केवल बादल ही नहीं भवन आर्किटेक्ट मोशे सैफदी, रेनू खन्ना और निर्माण कंपनी एलएंडटी का नाम भी रहेगा। प्रकाश सिंह बादल ने यह भी साबित कर दिया - सिख राजनीति के शहसवार अभी भी वही हैं। विकास और गवर्नेंस सुधार के साथ एक बड़ा पंथक एजेंडा इतने सहज तरीके से अकाली दल के हाथ होगा। यह एहसास बादल के अलावा किसी को भी नहीं था, शायद सुखबीर को भी नहीं। वो तो कॉर्पोरेट स्टाइल राजनीति के वकील हैं। बादल तो बहुत देर से इन प्रोजेक्टों के पीछे थे। अंदर की बात यह भी है कि इन आयोजनों में सुखबीर बादल की प्रबंधकीय हिस्सेदारी भी बहुत कम थी। देश के नेता आए, संत -महात्मा भी आए ,बड़ी संख्या में लोग आए ,यादगारों की तारीफ भी हुई, लेकिन एक और बड़ी घटना थी-प्रकाश सिंह बादल की ओर से लोगों से मांगी गई माफी। उन्होंने बार-बार हाथ जोड़कर नम्रता से अपील की ,\"मैं उम्र के उस पड़ाव में हूँ , यहाँ पता नहीं कब ऊपर से बुलावा आ जाए।
राजनीतिक और सामाजिक जीवन में उनसे हुई गलतियों को लोग माफ कर दें, हर इंसान से भूल हो जाती है।\" बादल का मकसद क्या था ? क्या वो हकीकत में पश्चाताप कर रहे हैं ? क्या वह अपनी राजनीतिक विरासत नई जनरेशन को संभाल रहे हैं या फिर वो अपनी आखिरी चुनावी पारी की सफलता के लिए सिख समुदाय और अन्य लोगों को भावुकता से अपील कर रहे थे? अर्थ लोग खुद ही समझें। बादल साहिब की मर्जी के बिना उनके मन की बात जानना तो असम्भव होता है ।
कैप्टेन कंवलजीत सिंह की दिवंगत आत्मा क्या कहेगी ?
विरासत -ए-खालसा के समारोह की एक बड़ी खामी खटक रही है ..मरहूम अकाली नेता कैप्टेन कंवलजीत सिंह को याद नहीं किया गया ,एक शब्द भी किसी ने नहीं बोला.बरजिंदर सिंह हमदर्द 1998 में आनंदपुर साहिब फाउंडेशन की अध्यक्षता छोड़ गए थे .तब पूरी ज़िम्मेदारी कैप्टेन कंवलजीत ने ही उठाई थी .सिख हेरिटेज काम्पलेक्स के शिलान्यास समारोह के करता-धर्ता कंवलजीत ही थे.मुझे अच्छी तरह याद है.कंवलजीत ने इस कार्य को सफल करने के लिए अपना फौजी स्टाइल बरता था . यह चूक कैसे हुई ,पता नहीं.लेकिन उस दिवंगत आत्मा के साथ बेइंसाफी ज़रूर हुई. प्रोफेस्सर मंजीत सिंह उस वक्त तख़्त केशगढ़ के जथेदार थे .उनको को वहां न बुलाने की भूल भी हुई. बादल साहिब ने खुद फ़ोन करके उनसे तो मुआफी मांग ली .
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Baljit Balli
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Tirchhi Nazar by Baljit Balli ,01-12-11,
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