चुनाव तो पहले भी बहुत हुए हैं लेकिन सोनिया मैडम को पंजाब की कोर कमेटी की क्लास खुद लेनी पड़े ऐसा पहली बार हुआ है। कारण? मैडम चिंता में हैं। आई बी, दूसरी एजेंसीज़ और पार्टी सूत्रों से मिली रिपोर्ट अच्छी नहीं है। चुनाव में सिर्फ 5 महीने बाकी हैं। कांग्रेसी चुनाव मुहिम का डंका नहीं बज रहा। पार्टी की गुटबंदी हावी दिखाई दे रही है। अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब के इंचार्ज गुलचैन सिंह चरक के बीच भी तालमेल नहीं बैठ रहा था। दूसरे गुट के नेताओं की शिकायतों का भी तांता सोनिया दरबार में था। रिपोर्ट्स में ऐसे भी संकेत हैं कि कांग्रेस की हवा बनती नहीं नजऱ आ रही। एंटी इन्कम्बैंसी मौजूद है फिर भी राजनीतिक एजेंडा अभी सत्ताधारी अकाली दल के पास है। विकास और गवर्नेंस रिफार्मर्स के एजेंडे को लोगों तक लेके जाने की पहल भी सुखबीर बादल के हाथ में है। सरकार के अंतिम वर्ष की आखरी छमाही है। सत्तापक्ष फिर भी आक्रामक है। राईट टू सर्विस एक्ट उनका ताज़ा महाअस्त्र है। मनप्रीत बादल, सुरजीत सिंह बरनाला और कामरेडों का तीसरा मोर्चा किसको ज्यादा नुकसान करेगा? इसका जवाब भी अभी स्पष्ट नहीं। लोगों में, अफसरशाही में और राजनीतिक खेमों में अहम सवाल उठने लगा है -क्या अकाली-भाजपा सरकार रिपीट भी हो सकती है ? हिसार में कांग्रेस पर हुई महामारी का असर भी है। सोनिया मैडम को चिंता तो होनी ही थी। गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में गैर कांग्रेस सरकारें रिपीट हो चुकी हैं। मैडम की नसीहत अमरिंदर को थी और दूसरे नेताओं को भी। अमरिंदर को यह कि अपने तंग दायरे से बाहर निकलो, खुद लीड करो पर अकेले नहीं, बाकी गुटों को साथ लो। चेतावनी बाकी सभी के लिए -हिसार नहीं दोहराना वरना अनुशासन का डंडा चलेगा। मैडम की क्लास का असर अभी देखना होगा लेकिन राजनीतिक प्रभाव अच्छा नहीं गया। 10 जनपथ के इस दरबार में अन्ना हजारे भी चर्चा में आए। हिसार के बाद टीम अन्ना का निशाना पंजाब चुनाव था। बादल और भाजपा स्वागत के किए तैयार थे। अन्ना को काटने कि चिंता में घिरे कैप्टन अमरिंदर ने साम, दाम, दंड, भेद अस्त्र बरते। टीम अन्ना को पहले ही चक्रव्यूह में डाल दिया गया है।
मनमोहन बनाम शहीद भगत सिंह?
प्रकाश सिंह बादल ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को मोहाली एयरपोर्ट का शिलान्यास करने का न्यौता दिया। उन्होंने इसे शहीद भगत सिंह का नाम दिया। मैंने उनसे पूछा ,‘एयरपोर्ट के नाम का अंतिम फैसला हो गया है ? ‘बादल साहिब ने अफ़सोस जताया, कहा, ‘अभी तो बीच में ही लटक रहा है’ शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का नाम देने का सुझाव बादल का ही था। भूपिंदर सिंह हूड्डा ने भी सहमति जाहिर की थी। पिछली संसद की नागरिक उड्डयन समिति ने इसपर अपनी मोहर भी लगा दी थी। आखरी पड़ाव केंद्रीय कैबिनेट था लेकिन यह पार नहीं हुआ। अब अड़ंगा कहां है? क्यों नहीं कैबिनेट में यह एजेंडा गया? डॉ. मनमोहन सिंह इस बारे में क्यों चुप हैं? वो उस महान शहीद की बेइज्जती क्यों करवा रहें हैं? सिर्फ इसलिए कि एयरपोर्ट का नाम पंजाब से न जुड़ जाए या कोई और दबाव है? सवाल जनता के है, जवाब उनको देना होगा। (कॉलम में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)
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TIRCHHI NAZAR BY BALJIT BALLI (COURTESY :DAINIK BHASKAR,OCT.,28,2011),
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