सुरजीत सिंह बरनाला और मनप्रीत बादल को गद्दार और पीठ में छुरा घोंपने वाले बता रहे बादल।
पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल आजकल काफी गुस्से में हैं। वह सुरजीत सिंह बरनाला और मनप्रीत बादल को गद्दार और पीठ में छुरा घोंपने वाले बता रहे हैं। बादल उन्हें दलबदलू कह रहे हैं। वह दलबदलुओं के खिलाफ भी मोर्चा खोलने की सलाह अन्ना हजारे को दे रहे हैं। बादल यह भी गिना रहे हैं कि उन्होंने सुरजीत सिंह बरनाला और मनप्रीत बादल के लिए क्या-क्या नहीं किया। शायद कामरेडों को भी ऐसी ताकीद बादल ने पहली बार की हो कि वो इनसे बचें। बादल का यह रूप कम देखने को मिलता है। समय आने पर वो अपने दुश्मनों से कुटनीतिक तरीके से निपटते हैं।
राजनीति में उतार-चढ़ाव उन्होंने बहुत देखे ही नहीं, झेले भी हैं। वो जल्दी क्रक्रोध या बौखलाहट में नहीं आते। सहनशील, शांत और संयमी हैं। लेकिन इन दिनों बादल अपने गुस्से पर काबू क्यों नहीं रख पा रहे? बादल के घर-परिवार के तीन स्तंभ इस बार उनके साथ नहीं हैं। सबसेे अहम उनकी पत्नी सुरिंदर कौर अब इस दुनिया में नहीं हंै, वो परिवार और कारोबार दोनों को संभालती थीं। साथ हीं वो सफल चुनाव प्रबंधक भी थीं। पत्नी के रूप में बादल का व्यक्तिगत सहारा नहीं रहा। दूसरा कारण, दास और पाश की जोड़ी नहीं रही। उनके भाई गुरदास बादल अलग हो गए हैं। दास, निजी और बाहरी जीवन में हमेशा बादल के साथ साए की तरह रहे।
बादल की मुहिम की डोर तो दास और सुरिंदर कौर के पास ही होती थी। तीसरा कारण मनप्रीत की बगावत है। एक मुलकात में मेरे पूछने पर उन्होंने कहा था कि दास और मनप्रीत का अलग होना, एक अनहोनी है जो कभी सोचा नहीं था। इन तीनों के खो जाने से बादल के ज़ज्बातों को गहरी ठेस लगी है। सुखबीर बादल ,अपने पिता के राजनीतिक वारिस तो जरूर साबित हो रहे हैं, लेकिन निजी जीवन के शून्य को भर नहीं पा रहे। बात यहीं पर खत्म नहीं होती, मनप्रीत का एलान है कि गुरदास बादल लंबी क्षेत्र से पाश के मुकाबले चुनाव लड़ेंगे। वो घर के भेदी भी हैं। बादल मानते हैं कि मनप्रीत का यह फैसला घर में सेंध लगाने जैसा ही है। शायद बादल के गुस्से का एक बड़ा और ताज़ा कारण है यही है। कामरेडों और बरनाला के साथ मिल के मनप्रीत ने बनाए सांझे मोर्चे और इसकी इज्जत बचाओ यात्रा के बारे में तो हिसाब-किताब लगते रहेंगे। लेकिन बादल के तीखे प्रहार का अर्थ साफ है। यह मोर्चा कांग्रेस के साथ-साथ अकाली और भाजपा गठजोड़ के लिए भी एक चुनौती है।
पंथक एजेंडे पर कायम हैं अमरिंदर ?
कांग्रेस की पंजाब बचाओ यात्रा सिखों के चौथे तख्त श्री दमदमा साहिब से शुरू करने और बुढलाडा में समाप्त करने का क्या अर्थ निकलता है । पंजाब कांग्रेस प्रधान कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने पंथक एजेंडे पर कायम हैं। वे मालवा में अकाली दल के सिख और जाट-किसानी वाले वोट बैंक में सेंध लगाने के पैंतरे को फिर आजमाना चाहते हैं । कांग्रेस के दलित और शहरी गैर सिख या हिन्दू वोट बैंक पर इस का क्या असर पड़ेगा, यह देखना होगा। 2007 में तो यह दांव दोआबा और नगरों में कांग्रेस को महंगा पड़ा था ।
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TIRCHHI NAZAR BY baljit balli (Dainik Bhaskar,Chandigarh,Oct.,21,2011),
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