नवीन पटनायक, नीतीश और मोदी के कदमों पर चलेंगे सुखबीर और भाजपा? तीन दिन पहले एक वरिष्ठ अकाली नेता मेरे पास थे। चर्चा हो रही थी विधानसभा चुनावों की। अकाली-भाजपा गठबंधन की स्थिति पूछी। नेता बोले, \'आम माहौल देखें तो हमारा हाथ ऊपर दिखाई पड़ता है। जब अकेले-अकेले निर्वाचन क्षेत्र पर नजर डालें तो जीत मुश्किल दिखाई पड़ती है।\' उनका मानना था, सरकार की कारगुजारी से लोग खुश हैं, अगर नाराजगी है तो वह स्थानीय नेताओं के साथ है। उनका दावा था एंटी-इन्कम्बेंसी व्यक्तिगत अधिक है। यह विचार सिर्फ उनका नहीं पार्टी के सीनियर नेताओं का भी है। पंजाब भाजपा में भी इसी विषय पर चर्चा हो रही है। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस से हिन्दू, शहरी और मध्वर्गीय मतदाता खुश नहीं है, लेकिन अधिकतर भाजपा नेताओं की छवि काफी बिगड़ी हुई है। मंथन दोनों पार्टियों में हो रहा है। अंदर की खबर है- अकाली भाजपा के नेता नवीन पटनायक, नीतीश कुमार तथा नरेंद्र मोदी के फार्मूले को अपनाने की फिराक में हैं। उन तीनों के सामने भी व्यक्तिगत एंटी-इन्कम्बेंसी की मुश्किल थी। विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने टिकट बांटी तो काफी बड़ा हिस्सा नए उम्मीदवारों को दे दिया था। यह फार्मूला काम आया। शिरोमणि कमेटी चुनाव में भी सुखबीर बादल ने यह तरीका बरता था। अब विधानसभा के लिए टिकट अधिकतर नए, ताजा और नौजवानों को ही मिले, ऐसे विचार अकाली-भाजपा गठबंधन की लीडरशिप पर हावी हो रहे हैं। इससे परंपरागत नेताओं में घबराहट भी है। उनके दबाव के आगे वो इसमें कहां तक सफल होते हैं, देखना पड़ेगा। कांग्रेस पार्टी में भी इस बार नए लोगों, युवाओं और महिलाओं को ज्यादा प्रतीनिधित्व देने का विचार तूल पकड़ रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव की तरह राहुल गांधी का अहम दखल भी उम्मीदवारों के चयन में जरूर होगा।
खालिस्तानी गुटों के आतंक का लाभ किसको ?
भारत के गृह मंत्रालय की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाओ। प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की सूची पर क्लिक करो। कुल गिनती 34 है पर सबसे ऊपर नाम बब्बर खालसा का है। अगले तीन नाम भी खालिस्तानी गुटों के हैं। मुस्लिम जेहादी गुट बहुत पीछे है। इनमें कहीं भी खालिस्तान टाइगर फोर्स का नाम नहीं। अब खुफिया एजेंसियां सबसे बड़ा खतरा इस संगठन से बता रही है। अम्बाला में पकड़ा गया आरडीएक्स भी इस संगठन का माना गया है। डिजाइन पुराना है। अस्थिरता फैलानी हो तो कमजोर और हताश आतंकी गुटों को पकड़ो, बचे गुटों का बेस पाकिस्तान होने की वजह से जेहादी गुटों के साथ मेल होना स्वाभाविक है। शायद खालिस्तानी गुट पंजाब के इन गुटों का जनाधार नहीं रहा, लेकिन विदेशों में इस विचारधारा को नए सिरे से सिखों के एक हिस्से का समर्थन मिलने लगा है। लेकिन प्रश्न यह भी है कि इस वक्त खालिस्तानी गुटों के आतंक का राजनीतिक लाभ किसको होगा? पंजाब में दहशत के दौर का तजुर्बा है। ऐसी स्थिति का लाभ सरकारों और सुरक्षा एजेंसी को भी होता है। सुरक्षा बलों को और ज्यादा अधिकार मिलते हैं, उनकी मनमानी बढ़ती है। किसी भी जन आंदोलन को रोकने का बहाना भी मिल जाता है। एक प्रश्न और है -पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाले हंै। इस वक्त खालिस्तान के नाम पर ऐसे आतंक का कोई राजनीतिक उद्देश्य है ? ऐसे सवालों के जवाब अक्सर बाद में जाहिर होते हैं।
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TIRCHHI NAZAR BY BALJIT BALLI (COURTESY :DAINIK BHASKAR,NOV.,04,2011),
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