सेक्टर 21 का पार्क। जमीन पर गिरे दो पेड़। शाख-शाख जख्मी पेड़ों ने गिरने से पहले खासा मुकाबला किया है तूफान के साथ। इन पर चढ़ कर खेल रहे बच्चे खुश हैं और वहां टहल रहे एक बुजुर्ग उदास। बच्चे कहते हैं-पहली बार इतने बड़े पेड़ को जमीन पर पड़े देखा है। बुजुर्ग बोले-ये पेड़ मेरे दोस्त थे। कुछ देर का कौतूहल और बोर होकर बच्चे अपने घर हो लिए। बुजुर्ग अब भी वहीं खड़े हैं। उनका दुख असीम है। वे बांटना चाहते हैं- सुबह आए तूफान में बिजली के खंभे टूटे, दीवारें गिरीं और पेड़ भी उखड़े, लेकिन जो नुकसान इस पार्क का हुआ उसे कौन समझ सकता है। ये महज पेड़ नहीं थे। ये मेरे दोस्त थे और तोतों का बसेरा। इस पार्क के आगे बने पैरट गार्डन से आने वाले हजारों तोते हर शाम दिन ढलने के बाद इन पर आकर रहा करते थे। आज जब वे लौटेंगे तो इन्हें अपनी जगह न पाकर कितने मायूस होंगे। इतने बरसों से हम सुबह शाम के साथी थे। दिन निकलते ही मैं अपने घर से बाहर आता, इन पेड़ों पर रात गुजारने के बाद काफिले बनाकर उड़ते तोतों को देखता। उनके जाने के बाद दिनभर पेड़ अपनी जगह खड़े रहते और मैं अपनी रिटायर जिंदगी में खो जाता। कहीं न कहीं हम सब एक दूसरे से जुड़े थे। शाम होते ही हम सब फिर कुछ देर के लिए एक साथ हो लेते।
ये बुजुर्ग हैं केएस चोपड़ा। छब्बीस बरस पहले रिटायर हुए और तब से अपने घर से लेकर पार्क तक में हरियाली को बढ़ावा देना इन्होंने अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया। वे मानते हैं कि हरियाली आपको जिंदगी जीने में मदद करती है। अपने घर में सैकड़ों छोटे-बड़े पौधे लगा रखे हैं और उनका खयाल बच्चों की तरह रखते हैं। अपने घर के ठीक सामने खड़े पेड़ों के साथ उनका भावनात्मक लगाव था। इनके गिर जाने के बाद उनकी उदासी किसी तरह कम होती नहीं दिखती। वे बताते हैं-सुबह मैं गुरुद्वारे गया। वहां से लौटकर आया तो तेज बारिश और तूफान शुरू हो चुका था। हमने घर के दरवाजे अंदर से बंद कर लिए। बाहर कभी बिजली तो कभी बारिश और हवा का शोर। बाद में जब शोर कुछ थमा तो हमने बाहर देखा, ये पेड़ जमीन पर गिरे पड़े थे। इसके बाद शहर के अलग-अलग हिस्सों से ऐसी खबरें सुनीं।
वीरवार की सुबह नौ बजे के बाद बारिश ने अचानक प्रचंड रूप ले लिया था। इसमें गिरा हर पेड़ एक कहानी था जो कभी न कभी किसी न किसी ने कही और सुनी होगी। किसी भी सेक्टर और पार्क में उनके खड़े रहने का इतिहास वीरवार को खत्म हो गया। ये सही है कि इनके जाने से शहर की हरियाली कम नहीं होगी लेकिन ये भी उतना ही सच है कि इनकी छांह में बैठकर बातें करने वाले चोपड़ा जैसे बुजुर्ग और इन पर आकर पनाह लेने वाले परिंदे शायद लंबे समय तक इनकी कमी महसूस करते रहें। नगर निगम की गाडिय़ों में लोड होकर जाते इन पेड़ों को देखकर चोपड़ा दुखी तो होंगे लेकिन दूसरे ही पल ये भी जरूर कह उठेंगे-अब कुछ नए पौधे और लगाने होंगे ताकि पंछी इस शहर में अपना बसेरा बनाते रहें।
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BEST HUMANISTIC STORY OF THE DAY IN CHANDIGARH BHASKAR,SEPT,16,2011,
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