कांग्रेस की स्थिति - जूते भी खाए और प्याज़ भी
पंजाबी की परचलत कथा है .एक राजा था . उसने एक दिन घोषणा की- अगर कोई १०० प्याज़ इकठे एक ही बार में खाए तो उसे सोने की मोहरें इनाम में दी जाएँगी.साथ एक शर्त भी लगाई - अगर कोई 100 प्याज़ खाने में नाकाम रहेगा तो उसे 100 जूते खाने पड़ेंगे .सोने की मोहरों के लालच में एक सज्जन राजा के पास आगया .
उसने दावा किया कि वो 100 प्याज़ खायेगा . राजा ने दरबार में ही शो शुरू कराया .वो शख्स प्याज़ खाने लगा .जब उसने आधे से ज़यादा प्याज़ खा लिए तो रुक गया .और प्याज खाने उसके लिए मुश्कल हो गए तो उसने हाथ खड़े कर दिए . कहा कि और नहीं खा सकता .नतीजा -शर्त के मुताबिक भरे दरबार में उसे 100 जूते मारे गये . " अन्ना के अनशन के मामले में कांग्रेस की आल्हा कमान तथा मनमोहन सरकार के साथ भी यही हुआ है.तानाशाहों जैसा अभिमानी रुख अपनाते हुए अन्ना को अनशन से रोकने की लिए हर हरबा वार्ता गया .अब देश दुनिया में अपनी बदनामी भी कराई , मुल्क भर की जनता के आक्रोश का निशान भी बने और आखिर में अन्ना को पाहिले से बड़ी जगा पर और बड़े पैमाने पर अनशन की छूट देनी पड़ी.
इस मौके कांग्रेस लीडरशिप तथा मनमोहन सरकार पर यह पंजाबी अखान खूब जचती है ,"नाले छितर वी खाधे ते नाले गंढे भी.” इस को लोक भाषा में "खुद थूक के चाटना भी कहा जाता है ." जैसे देश भर की जनता का जिस तरह का दबाव बना है , हो सकता है जन लोकपाल के मामले पर भी कांग्रेस और सरकार को अपनी घुमंडी अकड़ त्याग के अन्ना के साथ बातचीत करनी पड़े और इस बिल में अन्ना और सिविल सोसाइटी की ओर से पेश की गई म्ददें भी शामल करनी पड़े.
विधान सभा चुनाव के लिए मुद्दा बनेगा भृष्टाचार
अन्ना आन्दोलन का का अंजाम कुछ भी हो -राम देव से लेकर अन्ना के आन्दोलन के अब तक के घटनाक्रम के कुछ राजनितिक सामने है.इस से कांग्रेस तथा इसकी यू पी ए सरकार का विहार लोहों को गैर-लोकतान्त्रिक लगने लगा है .दूसरा कांग्रेस लीडरशिप का अक्स , भ्रिष्टाचारी परबन्ध तथा भृष्ट लोगों को बचाने की कोशिश करते खलनायक जैसा बन रहा है. तीसरा -इमानदार प्रधान मंत्री- डॉ मनमोहन सिंह अब लोगों को हकीकत में "बेईमानों के सरदार " लगने लगे हैं .इस का सीधा सिआसी प्रभाव 2012 में होने वाले पंजाब , उत्तर परदेश ,गुजरात और उत्तराखंड के विधान सभा चुनाव पे पड़ सकता है.इन पर्देशों में कांग्रेस के खिलाफ यह चुनावी मुद्दा बन सकता है . विरोध - पक्ष में होते हुए भी कांग्रेस बचाव के दांव पर हो सकती है. पंजाब की मिसाल सामने है.2002 की तरह इस वार कैप्टेन अमरिंदर सिंह भृष्टाचार के मुद्दे पे बादल सरकार पर हल्ला नही बोल सकते .
राम लीला मैदान जंग-ए- ऐलान जे पी का जंग-ए- ऐलान जे पी ने
अन्ना हजारे के आन्दोलन ने स्तवेन दशक में लोक नायक जय परकाश नारायण के क्रन्तिकारी आन्दोलन तथा जून 1975 में लगाई गई इमरजेंसी की याद ताज़ा करा दी है. यह समें का खेल ही समझो की 25 जून 1975 को जे पी ने जब इंदिरा गाँधी को गद्दी छोड़ने के लिए ललकारा था तो यह दिल्ली का राम लीला मैदान ही था.उस वक्त एक लाख लोगों की रैली भी बहुत बड़ी थी जिसमें में उन्हों ने नामवर कवि नामधारी सिंह दिनकर की इस पंक्ति का उचारण किया था-" सिंघासन खाली करो कि जनता आती है." अन्ना और जे पी दोनों ही सुतान्त्र्ता सेनानी रहे, लेकिन अन्ना गाँधीवादी हैं और किसी पार्टी के साथ नहीं जुड़े लेकिन जे पी कांग्रेस छोड़ कर समाजवादी विचारधारा के पैरोकार और राम मनोहर लोहिया की समाजवादी पार्टी के नेता बन गए थे.जे पी ने उस वक्त कांग्रेस का राजनितिक तख्ता पलट करने के लिए जनता पार्टी की अगवानी की लेकिन अन्ना हजारे ने सिर्फ अपना निशाना भृष्टाचार को बनाया है तथा अभी कोई राजनितिक आकांक्षा ज़ाहिर नहीं की है जब कि कांग्रेस के मुकाबले विरोध्पक्ष और दिनों दिन मज़बूत होती जा रही क्षेत्रीय पार्टिओं के पास ऐसा स्र्वपर्वात नेता नहीं है.
सम्पादकीय सलाहकार
पी टी सी न्यूज़
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TIRCHHI NAZAR BY BALJIT BALLI-DAINIK BHASKAR,AUG19,2011,
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